गवैया | शहंशाह आलम
गवैया अपनी पीड़ा को पूरी लय के साथ गाता है
आज वह न दुःख को बाँधता है न उदासी को
न धूप को न बादल को न अपनी आत्मा को
गवैया सेतु को गाता है उसके नीचे बहते जल को गाता है
रंग को गाता है शहद को गाता है नमक को गाता है
महुआ को गाता है जामुन को गाता है नीम को गाता है
गवैया अपनी धुन की गति और उतार-चढ़ाव में
गायन की शैली में बस अपने समय को गाता है
समय का यह रूपक किसका है जो दुःख से भरा है।