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गीत | डॉ श्योराज सिंह 'बेचैन' 

मज़दूर-किसानों के अधर यूँ ही कहेंगे।

हम एक थे, हम एक हैं, हम एक रहेंगे।।

मज़हब, धर्म  के नाम पर लड़ना नहीं हमें।

फिर्को में जातियों में बिखरना नहीं हमें |।

हम नेक थे, हम नेक हैं, हम नेक रहेंगे ।

समता की भूख हमसे कह रही है अब उठो।

सामन्तों, दरिन्दों की बढ़ो, रीढ़ तोड़ दो ।।

अपने हकूक दुश्मनों से लेके रहेंगे |

कैसा अछूत-छूत क्या, हैं हिन्दू क्या मुसलमान ।

यकरसाँ हैं ज़माने के रफीको! सभी इन्सान |।

जो फर्क करेगा उसे जाहिल कहेंगे |

फिकों से, जुबानों से तो ऊपर उठे हैं हम ।

तूफान की रफ़्तार से आगे बढ़े हैं हम ।।

मेहनत के हक के वास्ते लड़ते ही रहेंगे ।

हमको तो शहीदों की शहादत पर नाज़ है।

दलितों के खून में रँगा ये तख़्तो-ताज़ है।।

इस मुल्क को महफूज़ हमेशा ही देखेंगे |

सदियों से पी रहे हैं सितमगर लहू के जाम।

मजलूम की तबाही बढ़ाता है यह निज़ाम |।

सहने को बहुत सह लिया बस अब न सहेंगे |

दुनिया में कमेरों ने चमत्कार किया है।

नाकारों, निठल्लों ने सदा खून पिया है।।

इस जोंक सी फितरत को उभरने नहीं देंगे |

समता, स्वतन्त्रता के नये गीत गाएँ हम |

इंसानी भाईचारे के डंके बजाएँ हम |।

मेहनतकशों जहान के मिल बैठ कहेंगे।

हम एक थे, हम एक हैं, हम एक रहेंगे।।