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Description

घास । कार्ल सैंडबर्ग

अनुवाद : धर्मवीर भारती

आस्टरलिज़ हो या वाटरलू

लाशों का ऊँचे से ऊँचा ढेर हो—

दफ़ना दो; और मुझे अपना काम करने दो!

मैं घास हूँ, मैं सबको ढँक लूँगी

और युद्ध का छोटा मैदान हो या बड़ा

और युद्ध नया हो या पुराना

ढेर ऊँचे से ऊँचा हो, बस मुझे मौक़ा भर मिले

दो बरस, दस बरस—और फिर उधर से

गुज़रने वाली बस के मुसाफ़िर

पूछेंगे : यह कौन सी जगह है?

हम कहाँ से होकर गुज़र रहे हैं?

यह घास का मैदान कैसा है?

मैं घास हूँ

सबको ढँक लूँगी!