घटती हुई ऑक्सीजन | मंगलेश डबराल
अकसर पढ़ने में आता है
दुनिया में ऑक्सीजन कम हो रही है।
कभी ऐन सामने दिखाई दे जाता है कि वह कितनी तेज़ी से घट रही है
रास्तों पर चलता हूँ खाना खाता हूँ पढ़ता हूँ सोकर उठता हूँ
एक लम्बी जम्हाई आती है
जैसे ही किसी बन्द वातानुकूलित जगह में बैठता हूँ।
उबासी का एक झोका भीतर से बाहर आता है
एक ताक़तवर आदमी के पास जाता हूँ
तो तत्काल ऑक्सीजन की ज़रूरत महसूस होती है
बढ़ रहे हैं नाइट्रोजन सल्फ़र कार्बन के ऑक्साइड
और हवा में झूलते हुए चमकदार और ख़तरनाक कण
बढ़ रही है घृणा दमन प्रतिशोध और कुछ चालू किस्म की ख़ुशियाँ
चारों ओर गर्मी स्प्रे की बोतलें और ख़ुशबूदार फुहारें बढ़ रही हैं।
अस्पतालों में दिखाई देते हैं ऑक्सीजन से भरे हुए सिलिंडर
नीमहोशी में डूबते-उतराते मरीज़ों के मुँह पर लगे हुए मास्क
और उनके पानी में बुलबुले बनाती हुई थोड़ी-सी प्राणवायु
ऐसी जगहों की तादाद बढ़ रही है
जहाँ साँस लेना मेहनत का काम लगता है
दूरियों कम हो रही हैं लेकिन उनके बीच निर्वात बढ़ते जा रहे हैं
हर चीज़ ने अपना एक दड़बा बना लिया है
हर आदमी अपने दड़बे में क़ैद हो गया है
स्वर्ग तक उठे हुए चार-पाँच-सात सितारा मकानात चौतरफ़ा
महाशक्तियाँ एक लात मारती हैं
और आसमान का एक टुकड़ा गिर पड़ता है
ग़रीबों ने भी बन्द कर लिये हैं अपनी झोपड़ियों के द्वार
उनकी छतें गिरने-गिरने को हैं
उनके भीतर की ऑक्सीजन वहाँ दबने जा रही है।
आबोहवा की फ़िक्र में आलीशान जहाज़ों में बैठे हुए लोग
जा रहे हैं एक देश से दूसरे देश
ऐसे में मुझे थोड़ी ऑक्सीजन चाहिए
वह कहाँ मिलेगी
पहाड़ तो मैं बहुत पहले छोड़ आया हूँ
और वहाँ भी वह सिर्फ़ कुछ ढलानों-घाटियों के आसपास घूम रही होगी
जगह-जगह प्राणवायु के माँगनेवाले बढ़ रहे हैं
उन्हें बेचनेवाले सौदागरों की तादाद बढ़ रही है
भाषा में ऑक्सीजन लगातार घट रही है
उखड़ रही है शब्दों की साँस ।