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Description

गिरना - नरेश सक्सेना

चीज़ों के गिरने के नियम होते हैं! मनुष्यों के गिरने के 

कोई नियम नहीं होते। 

लेकिन चीज़ें कुछ भी तय नहीं कर सकतीं 

अपने गिरने के बारे में 

मनुष्य कर सकते हैं 

बचपन से ऐसी नसीहतें मिलती रहीं 

कि गिरना हो तो घर में गिरो 

बाहर मत गिरो 

यानी चिट्ठी में गिरो 

लिफ़ाफ़े में बचे रहो, यानी 

आँखों में गिरो 

चश्मे में बचे रहो, यानी 

शब्दों में बचे रहो 

अर्थों में गिरो 
यही सोच कर गिरा भीतर 

कि औसत क़द का मैं 

साढ़े पाँच फ़ीट से ज़्यादा क्या गिरूँगा 

लेकिन कितनी ऊँचाई थी वह 

कि गिरना मेरा ख़त्म ही नहीं हो रहा 

चीज़ों के गिरने की असलियत का पर्दाफ़ाश हुआ 

सत्रहवीं शताब्दी के मध्य, 

जहाँ, पीसा की टेढ़ी मीनार की आख़िरी सीढ़ी 

चढ़ता है गैलीलियो, और चिल्ला कर कहता है— 

“इटली के लोगो, 

अरस्तू का कथन है कि भारी चीज़ें तेज़ी से गिरती हैं 

और हल्की चीज़ें धीरे-धीरे 

लेकिन अभी आप अरस्तू के इस सिद्धांत को ही 

गिरता हुआ देखेंगे 

गिरते हुआ देखेंगे, लोहे के भारी गोलों 

और चिड़ियों के हल्के पंखों, और काग़ज़ों को 

एक साथ, एक गति से 

गिरते हुए देखेंगे 

लेकिन सावधान 

हमें इन्हें हवा के हस्तक्षेप से मुक्त करना होगा...” 

और फिर ऐसा उसने कर दिखाया 
चार सौ बरस बाद 

किसी को कुतुबमीनार से चिल्लाकर कहने की ज़रूरत नहीं है 

कि कैसी है आज की हवा और कैसा इसका हस्तक्षेप 

कि चीज़ों के गिरने के नियम 

मनुष्यों के गिरने पर लागू हो गए हैं 

और लोग 

हर क़द और हर वज़न के लोग 

यानी 

हम लोग और तुम लोग 

एक साथ 

एक गति से 

एक ही दिशा में गिरते नज़र आ रहे हैं 

इसीलिए कहता हूँ कि ग़ौर से देखो, अपने चारों तरफ़ 

चीज़ों का गिरना 

और गिरो 

गिरो जैसे गिरती है बर्फ़ 

ऊँची चोटियों पर 

जहाँ से फूटती हैं मीठे पानी की नदियाँ 
गिरो प्यासे हलक़ में एक घूँट जल की तरह 

रीते पात्र में पानी की तरह गिरो 

उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए 

गिरो आँसू की एक बूँद की तरह 

किसी के दुख में 

गेंद की तरह गिरो 

खेलते बच्चों के बीच 

गिरो पतझर की पहली पत्ती की तरह 

एक कोंपल के लिए जगह ख़ाली करते हुए 

गाते हुए ऋतुओं का गीत 

“कि जहाँ पत्तियाँ नहीं झरतीं 

वहाँ वसंत नहीं आता” 

गिरो पहली ईंट की तरह नींव में 

किसी का घर बनाते हुए 

गिरो जलप्रपात की तरह 

टरबाइन के पंखे घुमाते हुए 

अँधेरे पर रोशनी की तरह गिरो 
गिरो गीली हवाओं पर धूप की तरह 

इंदधनुष रचते हुए 

लेकिन रुको 

आज तक सिर्फ़ इंदधनुष ही रचे गए हैं 

उसका कोई तीर नहीं रचा गया 

तो गिरो, उससे छूटे तीर की तरह 

बंजर ज़मीन को 

वनस्पतियों और फूलों से रंगीन बनाते हुए 

बारिश की तरह गिरो, सूखी धरती पर 

पके हुए फल की तरह 

धरती को अपने बीज सौंपते हुए 

गिरो 
गिर गए बाल 

दाँत गिर गए 

गिर गई नज़र और 

स्मृतियों के खोखल से गिरते चले जा रहे हैं 

नाम, तारीख़ें, और शहर और चेहरे... 

और रक्तचाप गिर रहा है देह का 

तापमान गिर रहा है 

गिर रही है ख़ून में मिक़दार होमोग्लोबीन की 

खड़े क्या हो बिजूके से नरेश, 

इससे पहले कि गिर जाए समूचा वजूद 

एकबारगी 

तय करो अपना गिरना 

अपने गिरने की सही वजह और वक़्त 

और गिरो किसी दुश्मन पर 

गाज की तरह गिरो 

उल्कापात की तरह गिरो 

वज्रपात की तरह गिरो 

मैं कहता हूँ 

गिरो।