गूंगा नहीं था मै - जयप्रकाश कर्दम
गूँगा नहीं था मैं
कि बोल नहीं सकता था
जब मेरे स्कूल के मुझसे
कई क्लास छोटे बेढँगे से एक जाट के लड़के ने मुझसे कहा था—
‘अरे ओ मोरिया!
ज्यादै बिगड़े मत,कमीज कू पेंट में दबा कै मत चल।'
और मैंने चुपचाप अपनी क़मीज़ पैंट से बाहर निकाल ली थी
गूँगा नहीं था मैं न अक्षम,
अपाहिज या जड़ था
कि प्रतिवाद नहीं कर सकता था
उस लड़के के इस अपमानजनक व्यवहार का
लेकिन, अगर मैं बोल जाता
जातीय अहं का सिंहासन डोल जाता
सवर्ण छात्रों में जंगल की आग की तरह यह बात फैल जाती
कि ‘ढेढों के दिमाग़ चढ़ गया है,
मिसलगढ़ी का एक चमार का लड़का
क़ाज़ीपुरा के एक जाट के छोरे सै अड़ गया है।’
आपसी मतभेदों को भुलाकर तुरत-फुरत,
स्कूल के सारे सवर्ण छात्र गोल बंद हो जाते,
और खेल-अध्यापक से हॉकियाँ ले-लेकर
दलित छात्रों पर हमला बोल देते
इस हल्ले में कई दलित छात्रों के हाथ-पैर टूटते,
कइयों के सिर फूट जाते
और फिर, स्कूल-परिसर के अंदर झगड़ा करने के जुर्म में
हम ही स्कूल से ‘रस्टीकेट’ कर दिए जाते।