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Description

हम मिलते हैं बिना मिले ही  |  केदारनाथ अग्रवाल

हे मेरी तुम!

हम मिलते हैं

बिना मिले ही

मिलने के एहसास में

जैसे दुख के भीतर

सुख की दबी याद में।

हे मेरी तुम!

हम जीते हैं

बिना जिये ही

जीने के एहसास में

जैसे फल के भीतर

फल के पके स्वाद में।