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इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता! | गुलज़ार

इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता

‘फ़ाउल’ होते हैं बेशुमार मगर

‘पेनल्टी कॉर्नर’ नहीं मिलता!

दोनों टीमें जुनूँ में दौड़ती, दौड़ाए रहती हैं

छीना-झपटी भी, धौल-धप्पा भी

बात बात पे ‘फ़्री किक’ भी मार लेते हैं

और दोनों ही ‘गोल’ करते हैं!

इश्क़ में जो भी हो वो जाईज़ है

इश्क़ में ‘रेफ़री’ नहीं होता!