ईश्वर के सामने निर्वस्त्र | श्रद्धा उपाध्याय
तांबे के ईश्वर सपरिवार
जिनको मैंने अमेजन से खरीदा
मेरी किताबों के आगे स्थापित
एक बुझे हुए दीपक के पीछे
उन पर समर्पित पुष्प, न ताज़े, न सूखे
मेरे साथ रहते हैं
मेरे एकाकी एक कमरे के अस्तित्व में
सामान्यतः न पूजेl
कभी कभी न सुमिरे
फिर भी रहते हैं सुस्त साथी की तरह
और कुछ दिन मैं देखती हूं
मुझे देखते हुए
निर्वस्त्र
कपड़े पहनने से पहले
कपड़े उतारने के बाद
मैं लजा जाती हूँ
क्या मैं उन्हें ले जाऊं
अपने रहवासे से
किसी पूजाघर में
और राम को क्या अर्पण करूं
काया जो मैं रोज़ पहनती हूं
काया जिसमें उसको वनवास नहीं हो सकता