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Description

जब हम मारे जाएंगे | अरविन्द श्रीवास्तव

जब हम बुन रहे होंगे

कोई हसीन ख्वाब

तुम्हारे बिल्कुल करीब आकर

बाँट रहे होंगे आत्मीयता

प्रेम व नग्न भाषा

रच रहे होंगे कविताएँ

तभी एक साथ उठ खड़े होंगे

दुनिया के तमाम तानाशाह

जिनके फरमान पर

हत्यारे असलहों में

भर लेंगे बारुद

और खोजी कुत्ते

सूंघ-सूंघ कर इस धरा को

खोज निकालेंगे हमें

हम किसी कोमल और

मुलायम स्वप्न देखने के जुर्म में

मारे जाएंगे

जब हम मारे जाएंगे

तब शायद हमारे लिए

सबसे अधिक रोएगा

वह बच्चा

जो हमारे खतों को

पहुँचाने के एवज में

टॉफी पाता था।