जगह के पास | प्रकाश साहू
घर का एक कोना होता है
जहाँ कुछ तस्वीरें होती है माने गए ईश्वर की
या बीते हुए मनुष्य की
उसके आसपास कुछ छोटे बड़े रहस्य खुलते रहते हैं
वह कोना कभी चौंकता नहीं
उसी तरह के रहस्य
शराबखाने , अस्पताल और घनिष्ट मित्र
के पास भी खुलते हैं
ये जगहें कभी चौंकतीं नहीं
गुस्सा नहीं दिखाती
अपना लेती है हर बात को (तथ्यों की तरह)
साहस देती है अपनाने का
बालों में उँगलियाँ फिराकर सुलाती है
यह ध्यान रखते हुए
कि उसकी उँगलियाँ बालों में फंसे नहीं
सदा के लिए
सोने के बीच में वह रहस्य में से परेशानी का गट्ठर लेकर
उन्हें हल करती है
उनके लिए जीने का एक नुक्ता बनाकर
हाथ में धरा देती है
अगली सुबह जब उठते हैं
हम समझदार हो चुके होते हैं
चले जाते हैं
नये रहस्य के साथ फिर लौटने
जगह के पास