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Description

जैसे | अरुण कमल 

जैसे

मैं बहुत सारी आवाज़ें नहीं सुन पा रहा हूँ

चींटियों के शक्कर तोड़ने की आवाज़

पंखुड़ी के एक एक कर खुलने की आवाज़

गर्भ में जीवन बूँद गिरने की आवाज़

अपने ही शरीर में कोशिकाएँ टूटने की आवाज़

इस तेज़ बहुत तेज़ चलती पृथ्वी के अंधड़ में

जैसे मैं बहुत सारी आवाज़ें नहीं सुन रहा हूँ

वैसे ही तो होंगे वे लोग भी

जो सुन नहीं पाते गोली चलने की आवाज़ ताबड़तोड़

और पूछते हैं - कहाँ है पृथ्वी पर चीख?