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जेब में सिर्फ़ दो रुपये - कुमार अम्बुज 

घर से दूर निकल आने के बाद 

अचानक आया याद 

कि जेब में हैं सिर्फ दो रुपये 

सिर्फ़ दो रुपये  होने की असहायता ने घेर लिया मुझे 

डर गया मैं इतना कि हो गया सड़क से एक किनारे

 एक व्यापारिक शहर के बीचोबीच 

खड़े होकर यह जानना कितना भयावह है 

कि जेब में है कुल दो रुपये

आस पास से जा रहे थे सैकड़ों लोग

 उनमें से एक-दो ने तो किया मुझे नमस्कार भी 

 जिससे और ज़्यादा डरा मैं 

 उन्हें शायद नहीं था मालूम कि जिससे किया उन्होंने नमस्कार

 उसके पास हैं सिर्फ़  दो रुपये 

महज़ दो रुपए होने की निरीहता बना देती है निर्बल  

जब चारों तरफ़ दिख रहा हो ऐश्वर्य 

जब चारों तरफ़ से पड़ रही हो मार, 

तब निहत्था हो जाना है ज़िन्दगी के उस वक़्त में 

जब जेब में हों केवल दो रुपये 

फिर उनका तो क्या कहें इस संसार में 

जिनकी जेब में नहीं हैं दो रुपये भी ।