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Description

कबाड़खाना | प्रतिभा सक्सेना

हर घर में

कुछ कुठरियाँ या कोने होते हैं,

जहाँ फ़ालतू कबाड़ इकट्ठा रहता है.

मेरे मस्तिष्क के कुछ कोनों में भी

ऐसा ही अँगड़-खंगड़ भरा है!

जब भी कुछ खोजने चलती हूँ

तमाम फ़ालतू चीज़ें सामने आ जाती हैं,

उन्हीं को बार-बार,

देखने परखने में लीन

भूल जाती हूँ,

कि क्या ढूँढने आई थी!