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करूँ प्रेम ख़ुद से | शिवानी शर्मा 

किसी के लिए हूँ मैं ममता की मूरत, किसी के लिए अब भी छोटी सी बेटी ll

तजुर्बों ने किया संजीदा मुझको , पर किसी के लिए अब भी अल्हड़ सी छोटी॥

कहीं पे हूँ माहिर, कहीं पे अनाड़ी, कभी लाँघ जाऊँ मुश्किलों की पहाड़ी॥

कभी अनगिनत यूँ ही यादें पिरोती, कभी होके मायूस पलकें भिगोती॥

कभी संग अपनों के बाँटू मैं खुशियाँ, अकेले कभी ढेरों सपने संजोती॥

कभी यूँ लगे जैसे सब कुछ है मेरा, कभी भीड़ में ख़ुद को पाऊँ अकेली।।

कभी गीत गाऊँ कभी गुनगुनाऊँ, कभी सिसकियों को मैं सबसे छुपाऊँ ॥

कोशिश में रहती हूँ हर पल कि कैसे, ख़ुद को समझ कर के बेहतर बनाऊँ ॥

ख़ुद से मिलूँ , और पलभर को बोलूँ , हूँ क्या मैं पहेली मैं ख़ुद को बताऊँ॥

ज़रूरी है जानूँ , है मुझमें छुपा क्या, ख़ुशी क्या है मेरी, है ये फ़लसफ़ा क्या ॥

कई रंग मेरे, कई रूप भी है, मिलाकर मैं सबको, मैं ख़ुद को सजाऊँ॥

करूँ नाज़ ख़ुद पर, सुनूँ अपने दिल की, कर ख़ुद पे भरोसा, मैं ख़ुद को निखारूँ ॥

चाहे हों रिश्ते या फ़र्ज़ सारे, जितने भी किरदार हिस्से में आये,हंसकर बख़ूबी मैं सबको निभाऊँ ॥

मगर मैं ना भूलूँ , कि मैं हूँ ज़रूरी, करूँ प्रेम ख़ुद से, सब पे खुशियां लुटाऊँ ॥