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Description

 कौन हो तुम | अंजना बख्शी

तंग गलियों से होकर

गुज़रता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता

फटा लिबास ओढ़े

कहता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता

पैरों में नहीं चप्पल उसके

काँटों भरी सेज पर

चलता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता

आँखें हो गई हैं अब

उसकी बूढ़ी

धँसी हुई आँखों से

देखता है कोई

आहिस्ता-आहिस्ता

एक रोज़ पूछा मैंने

उससे,

कौन हो तुम

‘तेरे देश का कानून’

बोला आहिस्ता-आहिस्ता !!