कविता सी रची माँ - सूर्यबाला
सुनो, मुझे समय का
सिर्फ एक पृष्ठ सहज लेने दो
जिस पर कविता सी रची है मेरी माँ
वह पृष्ठ फड़फड़ाता है
जो किसी ऊँची डाल से हरसिंगार चढ़ती
लोरी के बूंदों की तरह
और खो सी जाती हूँ
सोन चिड़िया सी मै
वह पृष्ठ, ऊँची डाल और वे लोरी के बोल
नहीं सहेजे गए न ,
तो लोरियां कहाँ आकर गाएंगी?
और ऋतुएं कहाँ से सुनाएंगी ?
वन पाखी सी !
तो सुनो, मुझे समय का
सिर्फ एक पृष्ठ सहज लेने दो