खेजड़ी-सी उगी हो | नंदकिशोर आचार्य
खेजड़ी-सी उगी हो मुझ में
हरियल खेजड़ी सी तुम
सूने, रेतीले विस्तार में :
तुम्हीं में से फूट आया हूँ
ताज़ी, घनी पत्तियों-सा।
कभी पतझड़ की हवाएँ
झरा देंगी मुझे
जला देंगी कभी ये सुखे की आहें!
तब भी तुम रहोगी
मुझे भजती हुई अपने में
सींचता रहूँगा मैं तुम्हें
अपने गहनतम जल से।
जब तलक तुम हो
मेरे खिलते रहने की
सभी सम्भावनाएँ हैं।