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Description

खिचड़ी | अनामिका

इतने बरस बीते, इतने बरस ! 

सन्तोष है तो बस इतना 

कि मैंने ये बाल 

धूप में तो सफेद नहीं किए ! 

इन खिचड़ी बालों का वास्ता, 

देखा है संसार मैंने भी थोड़ा-सा ! 

दुनिया के हर कोने 

क्या जाने क्या-क्या खिचड़ी पक रही है : 

संसद में, निर्णायक मंडल में, 

दूर वहाँ इतिहास के खंडहरों में ! 

'चाणक्य की खिचड़ी' से लेकर 'बीरबल की खिचड़ी' तक 

सल्तनतें हैं और रणकौशल ! 

मुझे खिचड़ी-भाषा से कोई शिकायत नहीं ! 

खिचड़ी गरीब मेहनतकश का 

सबसे सुस्वादु और पौष्टिक भोजन है, 

पर मैं सुपली में फटककर 

कुछ कंकड़ चुन लेना चाहती हूँ! 

और तब धो-धोकर सीधा डबका लेना चाहती हूँ अपना सच

सादा ही

नमक-मिर्च मिलाए बिना ! 

डबकाना चाहती हूँ अपना सच 

उस बड़े सच की हँड़िया में जो साझा है! 

और चाहे जो हो- साझी सच्चाई 

काठ की हंड़िया नहीं है 

कि दुबारा न चढ़े आँच पर ! 

रोज़ वह करती है आग की सवारी, 

रोज़ रगड़घस सहती है हमारी-तुम्हारी ! 

मुझे खिचड़ी-भाषा से कोई शिकायत नहीं। 

छौंक के करछुल में जीरा बराबर 

चटक रहे हैं मेरे सपने- 

इसी में !