Listen

Description

खिड़की पर सुबह | टी. एस. एलियट

अनुवाद : धर्मवीर भारती

नीचे के बावर्चीख़ाने में खड़क रही हैं नाश्ते की तश्तरियाँ

और सड़क के कुचले किनारों के बग़ल-बग़ल—

मुझे जान पड़ता है—कि गृहदासियों की आर्द्र आत्माएँ

अहातों के फाटकों पर अंकुरित हो रही हैं, विषाद भरी

कुहरे की भूरी लहरें ऊपर मुझ तक उछाल रही हैं।

सड़क के तल्ले से तुड़े मुड़े हुए चेहरे

और मैले कपड़ों में एक गुज़रने वाली का आँसू

और एक निरुद्देश्य मुस्कान जो हवा में चक्कर काटती है

और छतों की सतह पर फैलती-फैलती विलीन हो जाती है।