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Description

किताब पढ़कर रोना - रघुवीर सहाय

रोया हूँ मैं भी किताब पढ़कर के

पर अब याद नहीं कि कौन-सी

शायद वह कोई वृत्तांत था

पात्र जिसके अनेक

बनते थे चारों तरफ़ से मँडराते हुए आते थे

पढ़ता जाता और रोता जाता था मैं

क्षण-भर में सहसा पहचाना

यह पढ़ता कुछ और हूँ

रोता कुछ और हूँ

दोनों जुड़ गए हैं पढ़ना किताब का

और रोना मेरे व्यक्ति का

लेकिन मैंने जो पढ़ा था

उसे नहीं रोया था

पढ़ने ने तो मुझमें रोने का बल दिया

दु:ख मैंने पाया था बाहर किताब के जीवन से

पढ़ता जाता और रोता जाता था मैं

जो पढ़ता हूँ उस पर मैं नहीं रोता हूँ

बाहर किताब के जीवन से पाता हूँ

रोने का कारण मैं

पर किताब रोना संभव बनाती है।