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Description

कोई बस नहीं जाता | नंदकिशोर आचार्य

कोई बस नहीं जाता खंडहरों में 

लोग देखने आते हैं बस । 

जला कर अलाव 

आसपास उग आये घास-फूस 

और बिखरी सूखी टहनियों का 

एक रात गुज़ारी भी किसी ने यहाँ 

सुबह दम छोड़ जाते हुए 

केवल राख ।

खंडहर फिर भी उस का कृतज्ञ है 

बसेरा किया जिस ने उसे – 

रात भर की खातिर ही सही। 

उसे भला यह इल्म भी कब थाः 

गुज़रती है जो खंडहर पर 

फिर से खंडहर हो जाने में !