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Description

कोई सागर नहीं | भवानीप्रसाद मिश्र

कोई सागर नहीं है अकेलापन

न वन है

एक मन है अकेलापन

जिसे समझा जा सकता है

आर-पार जाया जा सकता है जिसके

दिन में सौ बार

कोई सागर नहीं है

न वन है

बल्कि एक मन है

हमारा तुम्हारा सबका अकेलापन!