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Description

कोठरी और दुनिया | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

वे अपने ताले को देख कर ख़ुश हैं 

ख़ुश हैं क्योंकि उसके भीतर मैं हूँ

जिसकी तलाश थी उन्हें 

मगर मैं वहाँ नहीं हूँ 

जहाँ वे देख रहे हैं मुझे 

मैं उस हरे मैदान में हूँ 

जहाँ रंग-बिरंगे बच्चे खेल रहे हैं 

मैं उस समुद्र किनारे हूँ 

जहाँ प्रेमी-प्रेमिकाएँ टहल रहे हैं 

मैं उस आकाश के नीचे हूँ 

जहाँ पक्षी उड़ानें भर रहे हैं 

बाहर पराजित, भीतर मैं अजेय हूँ 

वे अपने ताले को देखकर ख़ुश हैं 

और मैं अपनी आत्मा 

जिसे बचा रखा है बुरे दिनों के लिए 

क्या दुनिया बड़ी नहीं है उनसे 

जिनके हाथ में चाभी है कोठरी की।