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क्या आपको प्रेम पसंद है ? | श्रद्धा उपाध्याय 

मैं पहले भी खो गई थी 

एक खाई की गहराई के भय में 

मैं नहीं सुन पाई थी झरने का संगीत

शोकगीत लिखने की व्यस्तता में 

सूरज से आँख ना मिला पाने की निराशा में 

मैंने फोड़ी ही अपनी आँखें कृत्रिम रौशनियों को घूरकर

अतीत के घाव जिन पर लगनी थी समय की मरहम

उनको लेकर बेवक्त भागी और तोड़े अपने पैर 

क्या मैं हमेशा मुँह धोउंगी आँसुओं से 

और समाज सदा रणभूमि होगा 

मैं प्रकृति को सौंपती हूँ अपने सारे शब्द 

और वापस लौटती है वहाँ से प्रेम की ही अनुगूंज 

मैं आपसे पूछना चाहती हूँ 

क्या आपको चिड़ियों की चहचहाहट पसंद है