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Description

‘लौट आओ तुम’ | डॉ दामोदर खड़से

लौट आओ तुम 

कि काले बादलों की ओट में

सूरज अंधा हो गया था

और दिन 

चिकने फर्श पर

औंधे गिर पड़ा

लहूलुहान उसकी नाक 

और कटा फटा उसका मुंह

किससे करे शिकायत...

कि क्यों और कैसे फिसल पड़ा वह 

क्या सोच रहा था दिन

सूरज के बिना

तुम लौट आओ कि

अब दिन रास्ता भटक गए हैं

और शाम भी होने वाली

तुम लौट आओ कि 

काले बादल सिर्फ तुम्हीं से कतराते हैं

फिर सूरज निकलेगा

और दिन की चेतना लौटेगी

लौट आओ तुम

अब शाम होने वाली है!