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Description

लोकतंत्र से उम्मीद | मयंक असवाल

एक देश की 

संसद को कीचड़ के 

बीचों बीच होना चाहिए ताकि 

अपने हर अभिभाषण के बाद 

संसद से निकलते ही एक राजनेता को 

पुल बनाना याद रहे।

एक लोकतांत्रिक कविता को 

गाँव, मोहल्ले और शहर के 

हर चौराहे पर होना चाहिए 

ताकि जनता के बीच 

आजादी और तानाशाही का 

अंतर स्पष्ट रहें।

एक लेखक को 

प्रतिपक्ष की कविता लिखने की 
समझ होनी चाहिए 

ताकि सिर्फ किताबों के बीच न 

सिमटकर 

वो मंचों की प्रसिद्धि से 

परे जन-जन की आवाज बन सके

एक नागरिक को 

अपने हक की आवाज का 

बोध होना चाहिए 

ताकि इस कागजी जम्हूरियत में 

सभ्य नागरिक बनने का 

अभिनय करते हुए 

वो सिर्फ मौन जीवन बिताकर न मरें।

जम्हूरियत: लोकतंत्र, गणतन्त्र, जनतंत्र, प्रजातंत्र