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Description

माँ का चेहरा | कृष्ण कल्पित 

जब छीन ली जाएगी हमसे एक-एक स्मृति 

जब किसी के पास कुछ नहीं बचेगा 

पीतल के तमग़ों के सिवा

जब सब कुछ ठहर जाएगा 

एक-एक पत्ता झर जाएगा 

सब पत्थर हो जाएगा 

ठोस और खुरदुरा 

नदी में नहीं दिखाई देगी चाँद की परछाईं 

किसी आँख में नहीं बचेगा सपना

हम सब कुछ भूल जाएँगे 

घर का रास्ता, गाँव का नाम 

दस का पहाड़ा, सब कुछ 

तब कौन जान पाएगा 

छब्बीस अगस्त उन्नीस सौ पिचासी तक 

मुझे एक-एक झुर्री समेत याद था 

अपनी माँ का चेहरा।