Listen

Description

माँ । श्रीनरेश मेहता

मैं नहीं जानता

क्योंकि नहीं देखा है कभी—

पर, जो भी

जहाँ भी लीपता होता है

गोबर के घर-आँगन,

जो भी

जहाँ भी प्रतिदिन दुआरे बनाता होता है

आटे-कुंकुम से अल्पना,

जो भी

जहाँ भी लोहे की कड़ाही में छौंकता होता है

मेथी की भाजी,

जो भी

जहाँ भी चिंता भरी आँखें लिए निहारता होता है

दूर तक का पथ -

वही,

हाँ, वही है माँ!!