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मैं बुद्ध नहीं बनना चाहता | शहंशा आलम 

मैं बुद्ध नहीं बनना चाहता

तुम्हारे लिए

बुद्ध की मुस्कराहट

ज़रूर बनना चाहता हूँ

बुद्ध मर जाते हैं

जिस तरह पिता मर जाते हैं

किसी जुमेरात की रात को

बुद्ध की मुस्कान लेकिन

जीवित रहती है हमेशा

मेरे होंठों पर ठहरकर

जिस मुस्कान पर

तुम मर मिटती हो

तेज़ बारिश के दिनों में।