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Description

मैं चाहता हूँ | मंगलेश डबराल

मैं चाहता हूँ कि स्पर्श बचा रहे 

वह नहीं जो कन्धे छीलता हुआ 

आततायी की तरह गुज़रता है 

बल्कि वह जो एक अनजानी यात्रा के बाद 

धरती के किसी छोर पर पहुँचने जैसा होता है

मैं चाहता हूँ स्वाद बचा रहे 

मिठास और कड़ुवाहट से दूर 

जो चीज़ों को खाता नहीं है 

बल्कि उन्हें बचाये रखने की कोशिश का ही 

एक नाम है

एक सरल वाक्य बचाना मेरा उद्देश्य है 

मसलन यह कि हम इनसान हैं 

मैं चाहता हूँ इस वाक्य की सचाई बची रहे 

सड़क पर जो नारा सुनाई दे रहा है

वह बचा रहे अपने अर्थ के साथ 

मैं चाहता हूँ निराशा बची रहे 

जो फिर से एक उम्मीद 

पैदा करती है अपने लिए

शब्द बचे रहें

जो चिड़ियों की तरह कभी पकड़ में नहीं आते 

प्रेम में बचकानापन बचा रहे 

कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा।