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Description

मैं उड़ जाऊँगा | राजेश जोशी 

सबको चकमा देकर एक रात

मैं किसी स्वप्न की पीठ पर बैठकर उड़ जाऊँगा

हैरत में डाल दूँगा सारी दुनिया को

सब पूछते बैठेंगे

कैसे उड़ गया ?

क्यों उड़ गया ?

तंग आ गया हूँ मैं हर पल नष्ट हो जाने की

आशंका से भरी इस दुनिया से

और भी ढेर तमाम जगह हैं इस ब्रह्मांड में

मैं किसी भी दुसरे ग्रह पर जाकर बस जाऊँगा

मैं तो कभी का उड़ गया होता

चाय की गुमटियों और ढाबों में गरम होते तन्दूर पर

सिंकती रोटियों के लालच में मैं हिलगा रहा इतने दिन

ट्रक ड्राइवरों से बतियाते हुए

मैदान में पड़ी खटियों पर

गुज़ार दीं मैंने इतनी रातें

क्या यह सुनने को बैठा रहूँ धरती पर

कि पालक मत खाओ ! मेथी मत खाओ !

मत खाओ हरी सब्ज़ियाँ !

मैं सारे स्वप्नों को गूँथ-गूँथकर

एक खूब लम्बी नसैनी बनाऊँगा

और सारे भले लोगों को ऊपर चढ़ाकर

हटा लूँगा नसैनी

ऊपर किसी ग्रह पर बैठकर

ठेंगा दिखाऊँगा मैं सारे दुष्टों को

कर डालो कर डालो जैसे करना हो नष्ट

इस दुनिया को

मैं वहीं उगाऊँगा हरी सब्ज़ियाँ और

तन्दूर लगाऊँगा

देखना एक रात

मैं सचमुच उड़ जाऊँगा।