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मैं उनका ही होता|  गजानन माधव मुक्तिबोध

मैं उनका ही होता, जिनसे

मैंने रूप-भाव पाए हैं।

वे मेरे ही लिए बँधे हैं

जो मर्यादाएँ लाए हैं।

मेरे शब्द, भाव उनके हैं,

मेरे पैर और पथ मेरा,

मेरा अंत और अथ मेरा,

ऐसे किंतु चाव उनके हैं।

मैं ऊँचा होता चलता हूँ

उनके ओछेपन से गिर-गिर,

उनके छिछलेपन से खुद-खुद,

मैं गहरा होता चलता हूँ।