Listen

Description

 मंगल गान - अशोक वाजपेयी

नदी गा रही है

नदी से नहा कर लौटता देव-शिशु गा रहा है 

किनारे के किसी झुरमुट में अदृश्य एक चिड़िया गा रही है

नदी तक जाती पगडंडी अपनी हरी घास में धीरे से गा रही है

नदी पर झलकता रक्तिम सूर्यास्त गा रहा है

फ़ीकी सी आभा लिए उभरता अर्धचंद्र गा रहा है

गा रहे हैं सभी एक असमाप्य मंगलकामना

मुझे सुनाई नहीं देता पृथ्वी का आकाश का मंगल गान?

सुनता हूँ विलाप,चीख पुकार, चीत्कार 

सुनाई नहीं देता कोई मंगल गान!

लगता है सुनाई दे रहा है ईश्वर का सिसकना, आकाश का कोने में जाकर बिलखना,

पृथ्वी का अपने निबिड़ एकांत में चीखना।

सुनाई नहीं देता कोई मंगल गान।