Listen

Description

मातृभाषा - केदारनाथ सिंह

जैसे चींटियाँ लौटती हैं

बिलों में

कठफोड़वा लौटता है

काठ के पास

वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक

लाल आसमान में डैने पसारे हुए

हवाई-अड्डे की ओर

ओ मेरी भाषा

मैं लौटता हूँ तुम में

जब चुप रहते-रहते

अकड़ जाती है मेरी जीभ

दुखने लगती है

मेरी आत्मा