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Description

मौन ही मुखर है | विष्णु प्रभाकर

कितनी सुन्दर थी

वह नन्हीं-सी चिड़िया

कितनी मादकता थी

कण्ठ में उसके

जो लाँघ कर सीमाएँ सारी

कर देती थी आप्लावित

विस्तार को विराट के

कहते हैं

वह मौन हो गई है-

पर उसका संगीत तो

और भी कर रहा है गुंजरित-

तन-मन को

दिगदिगन्त को

इसीलिए कहा है

महाजनों ने कि

मौन ही मुखर है,

कि वामन ही विराट है ।