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Description

मेरी ख़ता । अमृता प्रीतम

अनुवाद : अमिया कुँवर

जाने किन रास्तों से होती

और कब की चली

मैं उन रास्तों पर पहुँची

जहाँ फूलों लदे पेड़ थे

और इतनी महक थी—

कि साँसों से भी महक आती थी

अचानक दरख़्तों के दरमियान

एक सरोवर देखा

जिसका नीला और शफ़्फ़ाफ़ पानी

दूर तक दिखता था—

मैं किनारे पर खड़ी थी तो दिल किया

सरोवर में नहा लूँ

मन भर कर नहाई

और किनारे पर खड़ी

जिस्म सुखा रही थी

कि एक आसमानी आवाज़ आई

यह शिव जी का सरोवर है...

सिर से पाँव तक एक कँपकँपी आई

हाय अल्लाह! यह तो मेरी ख़ता

मेरा गुनाह—

कि मैं शिव के सरोवर में नहाई

यह तो शिव का आरक्षित सरोवर है

सिर्फ़... उनके लिए

और फिर वही आवाज़ थी

कहने लगी—

कि पाप-पुण्य तो बहुत पीछे रह गए

तुम बहूत दूर पहुँचकर आई हो

एक ठौर बँधी और देखा

किरनों ने एक झुरमुट-सा डाला

और सरोवर का पानी झिलमिलाया

लगा—जैसे मेरी ख़ता पर

शिव जी मुस्करा रहे...