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मिटने का अधिकार / महादेवी वर्मा

 

वे मुस्काते फूल, नहीं

जिनको आता है मुरझाना,

वे तारों के दीप, नहीं

जिनको भाता है बुझ जाना!

 

वे सूने से नयन,नहीं

जिनमें बनते आँसू मोती,

वह प्राणों की सेज,नही

जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती!

 

वे नीलम के मेघ, नहीं

जिनको है घुल जाने की चाह

वह अनन्त रितुराज,नहीं

जिसने देखी जाने की राह!

 

ऎसा तेरा लोक, वेदना

नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,

जलना जाना नहीं, नहीं

जिसने जाना मिटने का स्वाद!

 

क्या अमरों का लोक मिलेगा

तेरी करुणा का उपहार

रहने दो हे देव! अरे

यह मेरे मिटने क अधिकार!