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Description

मित्र  | अश्विनी 

लक्ष्य को सदा चेताए, 

तेरी त्रुटि कभी न छुपाए,

तेरा क्रोध भी सह जाए, 

जो भटकने न दे मार्ग से, वह मित्र है ।

मित्र का हृदय निर्मल, विशाल, 

मित्र ही बने मित्र की ढाल, 

आँच न दे आने मित्र पर, 

जो दे काल को टाल, वह मित्र है ।

क्षुब्ध मन को बहलाता मित्र है, 

असफलता को करता सहज,

 ढांढस बंधाता मित्र है ।

मन की तपती हुई रेत पर, 

ठंडा जल छिड़काता मित्र है।

 

कंधे पर ख़ुशी से उठाता मित्र है, 

दुख में उस पर सहलाता मित्र है, 

अंत में उठाता उसी पर, अश्रु बहाता मित्र है ।

निरपेक्ष, निष्काम संबंध है मित्रता, 

संबंधों का शीर्ष है मित्रता, 

जीवन का अप्रतिम संबंध है मित्रता, 

सबसे पवित्र संबंध है मित्रता ।