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Description

मृत्यु  -  विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 

मेरे जन्म के साथ ही हुआ था

उसका भी जन्म...

मेरी ही काया में पुष्ट होते रहे

उसके भी अंग

में जीवन-भर सँवारता रहा जिन्हें

और ख़ुश होता रहा

कि ये मेरे रक्षक अस्त्र हैं

दरअसल वे उसी के हथियार थे

अजेय और आज़माये हुए

मैं जानता था

कि सब कुछ जानता हूँ

मगर सच्चाई यह थी

कि मैं नहीं जानता था

कि कुछ नहीं जानता हूँ...

मैं सोचता था फतह कर रहा हूँ किले पर किले 

मगर जितना भी और जिधर भी बढ़ता था

उसी के करीब और उसी की दिशा में

वक्‍त निकल चुका था दूर।

जब मुझे उसके षड्यंत्र का अनुभव हुआ

आख़िरी बार -

जब उससे बचने के लिए

में भाग रहा था

तेज़ और तेज़ 

और अपनी समझ से

सुरक्षित पहुँच गया जहाँ

वहाँ वह मेरी प्रतीक्षा में .

पहले से खड़ी थी..

मेरी मृत्यु|