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Description

मुझे प्रेम चाहिए | नीलेश रघुवंशी 

मुझे प्रेम चाहिए

घनघोर बारिश-सा ।

कड़कती धूप में घनी छाँव-सा

ठिठुरती ठंड में अलाव-सा प्रेम चाहिए मुझे।

उग आये पौधों और लबालब नदियों-सा

दूर तक पैली दूब

उस पर छाई ओस की बुँदों सा ।

काले बादलों में छिपा चाँद

सूरज की पहली किरण-सा

प्रेम चाहिए ।

खिला-खिला लाल गुलाब-सा

कुनमुनाती हँसी-सा

अँधेरे में टिमटिमाती रोशनी-सा प्रेम चाहिए।

अनजाना अनचीन्हा अनबोला सा

पहली नज़र-सा प्रेम चाहिए मुझे ।

ऊबड़-खाबड़ रास्तों से मंज़िल तक पहुँचाता

प्रेम चाहिए मुझे।

मुझे प्रेम चाहिए

सारी दुनिया रहती हो जिसमें

प्रेम चाहिए मुझे ।