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Description

नावें | नरेश सक्सेना 

नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैले

क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं 

नावें पार उतारती हैं

ख़ुद नहीं उतरतीं पार

नावें धार के बीचों-बीच  रहना चाहती हैं

तैरने न दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठीक

लेकिन तैरने लायक गहराई से ज़्यादा के बारे में

कुछ भी नहीं जानतीं नावें

बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं

छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुईं 

नावें डूबने से डरती हैं

भर-भर कर खाली होती रहती हैं नावें

सुनसान तटों पर चुपचाप

खूँटों से बँधी रहती हैं नावें।