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नहीं दिखेगी माँ | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 

नहीं दिखेगी माँ

फिर कभी इस रूप में

भोर होगा भिनुसार

चिरैया एक बोलेगी

तिलक चढ़ेगा यज्ञोपवीत

होगा कन्यादान

बस माँ नहीं होगी

पराती गाने के लिए

घिरेगी संझा

चौखट पर जलेगा दीया

आकाश में उगेंगे चंदामामा

बस माँ नहीं होगी

उन्हें दूध-भात खिलाने के लिए

बरसेंगी रातें आँगन में झमाझम

धूप में धू- धू जलेगा गाँव

चलेंगी पुरवा और पछुआ हवाएँ

मृग की आँखों-सी चमकेगी बिजली

उत्तर के आकाश में

दरवाज़े पर ताज़िया लाएँगे गाँव के लोग 

फुलझड़ियाँ छोड़ेंगे बच्चे

आएगी दीवाली

बनेगी अल्पना तुलसी के चौरे पर

बस माँ नहीं होगी

जम का एक दीया

घर के बाहर निकालने के लिए

फूल खिलेंगे माँ के लगाए हुए कोले में

बच्चे स्कूल जाएँगे

पीठ पर बस्ते

और बस्ते में अमावट छिपाए हुए

डाकुओं का हल्ला होगा आधी रात

तनेंगी लाठियाँ

सियार रोएँगे खेतों में

आएँगे भरथरी गाने वाले रमता जोगी

गाएँगे रानी पिंगला के गीत

बस माँ नहीं होगी

उन्हें भिक्षा देने के लिए

तोता फड़फड़ाएगा पिंजड़े में

थाली में लड़ेंगी बिल्लियाँ

दिखेंगे नागपंचमी के साँप

दशहरे के नीलकंठ

क्वार के खंजन

बस माँ नहीं दिखेगी

फिर कभी इस रूप में ।