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नज़र झुक गई और क्या चाहिए | फ़िराक़ गोरखपुरी

नज़र झुक गई और क्या चाहिए

अब ऐ ज़िंदगी और क्या चाहिए

निगाह -ए -करम की तवज्जो तो है

वो कम कम सही और क्या चाहिए

दिलों को कई बार छू तो गई

मेरी शायरी और क्या चाहिए

जो मिल जाए दुनिया -ए -बेगाना में

तेरी दोस्ती और क्या चाहिए

मिली मौत से ज़िंदगी फिर भी तो

न की ख़ुदकुशी और क्या चाहिए

जहाँ सौ मसाइब थे ऐ ज़िंदगी 

मोहब्बत भी की और क्या चाहिए

गुमाँ जिसपे है ज़िंदगी का 'फ़िराक़'

वही मौत भी और क्या चाहिए