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Description

ओ पृथ्वी तुम्हारा घर कहाँ है | केदारनाथ सिंह 

जीने के अथाह खनिजों से लदी

और प्रजनन की अपार इच्छाओं से भरी हुई

ओ पृथ्वी

ओ किसी पहले आदमी की

पहली गोल लिट्टी

कहीं अपने ही भीतर के कंडे पर

पकती हुई

ओ अग्निगर्भा

ओ भूख

ओ प्यास

ओ हल्दी

ओ घास

ओ एक रंगारंग भव्य नश्वरता

जिसकी हर आवृत्ति में

वही उदग्रता

वही पहलापन

ओ पृथ्वी

ओ मेरी हमरक़्स

तुम्हारा घर कहाँ है!