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पढ़िए गीता | रघुवीर सहाय

पढ़िए गीता

बनिए सीता

फिर इन सब में लगा पलीता

किसी मूर्ख की हो परिणीता

निज घर-बार बसाइए

होंय कैँटीली

आँखें गीली

लकड़ी सीली, तबियत ढीली

घर की सबसे बड़ी पतीली

भर कर भात पसाइए