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Description

परचून | अनामिका

पंसारी जहाँ भी लगा दे दस बोरियाँ–

पटरी पर, गैराज में, खोली के अन्दर– 

रख ले दो-चार बोइयाम– 

आराम से वहीं सज जाती है 

खुदरा परचून की दुकान– 

बड़े-बड़े स्टोरों से सीधी आँखें लड़ाती! 

बकझक, कुछ मोलतोल, हालचाल या आपसदारी, 

‘आज नकद, कल उधार’ की पट्टी के बावजूद 

कई महीनों की बेरोक वह देनदारी–

इनके बिना बड़ी बेस्वाद है खरीदारी– 

नहीं जानती यह एफ.डी.आई.!