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Description

परवाह | जसिंता केरकेट्टा

माँ  

एक बोझा लकड़ी के लिए 

क्यों दिन भर जंगल छानती, 

पहाड़ लाँघती, 

देर शाम घर लौटती हो? 

माँ कहती है : 

जंगल छानती, 

पहाड़ लाँघती, 

दिन भर भटकती हूँ 

सिर्फ़ सूखी लकड़ियों के लिए। 

कहीं काट न दूँ कोई ज़िंदा पेड़!