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Description

पैड़ और पत्ते | आदर्श कुमार मिश्र 

पेड़ से पत्ते टूट रहे हैं

पेड़ अकेला रहता है,

उड़ - उड़कर पते दूर गए हैं

पेड़ अकेला रहता है,

कुछ पत्तों के नाम बड़े हैं, पहचान है छोटे

कुछ पत्तों के काम बड़े पर बिकते खोटे

कुछ पत्तों  पर कोई शिल्पी 

अपने मन का चित्र बनाकर बेच रहा है

कुछ पत्तों को लाला साहू

अपने जूते पोंछ - पोंछकर फेक रहा है

कुछ पत्ते बेनाम पड़े हैं,

सूख रहें हैं, गल जायेंगे

कुछ पत्तों के किस्मत में ही आग लिखी है 

जल जायेंगे

कुछ पत्ते, कुछ पत्तों से

लाग - लिपटकर रो लेते हैं

कुछ पत्ते अपने आंसू 

अपने सीने में बो लेते है

कुछ पत्तों को रह - रहकर

उस घने पेड़ की याद  सताती

वो भी दिन थे, शाख हरी थी

दूर कहीं से चिड़िया आकर,अण्डे देती. गना गाती

ए्क अकेला मुरझाया सा

पेड़ बेचारा सूख रहा है

एक अकेला ग़म खाया सा

उसका धीरज टूट रहा है

पत्ते हैं परदेसी  फिर वो

उनका रस्ता तकता क्यों है 

सारी दुनिया सो जाती है 

पेड़ अकेला जगता क्यों है