पीछे से | अरुण कमल
कितना साफ़ आकाश है
पानी से पोंछा हुआ दूर ऊपर उठा उठता जाता नील
बादलों के तबक कहीं-कहीं
और इतने पंछी उठ रहे झुक रहे
हवा बस इतनी कि भरी है सब जगह
और एक चिड़िया वहाँ अकेली छोटी ठहरी हुई
ज़िंदगी की छींट
कितना सुन्दर है संसार दिन के दो बजे
मनोहर शान्त
और यह सब मैं देख रहा हूँ गुलेल के पीछे से।